Friday, 23 May 2014

तुझसे मिल
चाहत ने फिर सर
उठाया है

तेरी
नज़र कि छाव पा कर
मौहब्बत का फूल
मुस्कुराया है

प्यासी
चली थी
सहरा में जैसे
तेरे
काफ़िले में कर
दिल को सुकूं आया है

चुभन थी साँसों में,
तेरे हाथों को छू कर
जाने
ये कैसा करार आया है

बिखरे
ख्वाब बटोर लायी थी
तूने
गले लगा कर
उनका हार मुझे पहनाया है

तू मिला
रौशनी सा ऐसे
लगता है मेरे
दर पे खुदा आया है ……….

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