वो
कुछ पल
जो कमज़ोर थे
उन पलों में जो साथ रहा
अब वही याद आता है
साथ पुराना था
पर इस बार मिला
तो नया लगा
वो सवेरा सा मोहक
काली बदली के
बाद चमकते सूरज सा
तन पर पड़ा और
मैं खिल उठी
पर
वो साथ
छलावा था
इतनी तेज़ चमक थी कि
आँखे चौंधया गयी और
वो नहीं देख सकी जो
देखना था, जानना था
आँखे भीगी है अब
दर्द से, तपिश से
जल गयी है
धोखे कि आग से
लहू उतर आता है
अक्सर दिल का
आँखों में
सुना था
दर्द में मिला साथ
सच्चा होता है
झूठ…….
सच्चा
कुछ नहीं
कुछ भी नहीं
न तुम सच
न तुम्हारा साथ……….
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