Saturday, 17 May 2014

वो
कुछ पल
जो कमज़ोर थे
उन पलों में जो साथ रहा
अब वही याद आता है

साथ पुराना था
पर इस बार मिला
तो नया लगा
वो सवेरा सा मोहक
काली बदली के
बाद चमकते सूरज सा
तन पर पड़ा और
मैं खिल उठी

पर
वो साथ
छलावा था
इतनी तेज़ चमक थी कि
आँखे चौंधया गयी और
वो नहीं देख सकी जो
देखना था, जानना था

आँखे भीगी है अब 
दर्द से, तपिश से
जल गयी है
धोखे कि आग से
लहू उतर आता है
अक्सर दिल का
आँखों में

सुना था
दर्द में मिला साथ
सच्चा होता है

झूठ…….

सच्चा
कुछ नहीं
कुछ भी नहीं

तुम सच
तुम्हारा साथ……….

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