इतनी
फुर्सत नहीं हैं मेरे पास
की ज़रा ठहरूं और
गिनू तुम्हारे शिकवे
देखूं अपनी गहराती आँखों के
काले घेरे .....नापूं कलाई की
कमजोरी को
विचारू झड़ते बालों को और
उलझा करूं न खाने पर
करूँ भी तो क्यूँ ....किस लिए
कोई वजह नहीं लगती
शिकवे, शिकायतें और ख्याल
उसके लिए जो
ज़िन्दगी को जीये .....जीने सा
मैं तो नहीं हूँ .....हाँ नहीं हूँ ऐसी
बस यूँही दिन जो जा रहे है
आँखों में, बातों में .....तारीखों में
बस यही है जीवन शायद
फिर क्यूँ करना
जान को कोई झमेला....
क्यूँ विचार करूं .....
बस आज में जब जीना है
तो क्यूँ इतनी
बेवजह का दर्द मोल लेना है
कहाँ इतनी फुर्सत मुझे
की तेरी कमीज़ के बटन लगा सकूँ
तेरे बालों में हाथ फिरा सकूँ
शाम-सवेरे तेरे होठों पर
मदमाता चुम्बन रख सकूँ
अपने लिए फिर आईना
खरीद सकूँ
अपने दुप्पटे से झड़े सितारे फिर
से उसमे सजा सकूँ ......
कहाँ इतनी फुर्सत मुझे ....
फुर्सत नहीं हैं मेरे पास
की ज़रा ठहरूं और
गिनू तुम्हारे शिकवे
देखूं अपनी गहराती आँखों के
काले घेरे .....नापूं कलाई की
कमजोरी को
विचारू झड़ते बालों को और
उलझा करूं न खाने पर
करूँ भी तो क्यूँ ....किस लिए
कोई वजह नहीं लगती
शिकवे, शिकायतें और ख्याल
उसके लिए जो
ज़िन्दगी को जीये .....जीने सा
मैं तो नहीं हूँ .....हाँ नहीं हूँ ऐसी
बस यूँही दिन जो जा रहे है
आँखों में, बातों में .....तारीखों में
बस यही है जीवन शायद
फिर क्यूँ करना
जान को कोई झमेला....
क्यूँ विचार करूं .....
बस आज में जब जीना है
तो क्यूँ इतनी
बेवजह का दर्द मोल लेना है
कहाँ इतनी फुर्सत मुझे
की तेरी कमीज़ के बटन लगा सकूँ
तेरे बालों में हाथ फिरा सकूँ
शाम-सवेरे तेरे होठों पर
मदमाता चुम्बन रख सकूँ
अपने लिए फिर आईना
खरीद सकूँ
अपने दुप्पटे से झड़े सितारे फिर
से उसमे सजा सकूँ ......
कहाँ इतनी फुर्सत मुझे ....
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