Monday 30 September 2013

मैं
जो घुटन में हूँ
पर क्यूँ
घुटन में हूँ
मेरा मन
सदमे में जैसे
शांत सा
साँस टनों बोझ
लिए घिसट घिसट
रुक रुक कर
चलती है
इतने ज़ख्म लगे है
शब्दों को
गुज़रती है तो
छिल जाते है
गला भर आता है
लहू से
उगल दूँ ये ज़ख्म
या फिर
सी लूँ इन्हें
उगले से तो
अन्दर
शांति हो जाएगी
पर बहार ज़लज़ला
आ जायेगा
जो सी दिया तो
जानती हूँ
फिर उफन उफन
आएगा
निगल लूँ फिर
बात आबरू सी रहेगी
दफन .....

2 comments:

  1. उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़.....

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  2. ....कुछ कह देते ....मानव जी

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