Monday, 30 September 2013

मैं
जो घुटन में हूँ
पर क्यूँ
घुटन में हूँ
मेरा मन
सदमे में जैसे
शांत सा
साँस टनों बोझ
लिए घिसट घिसट
रुक रुक कर
चलती है
इतने ज़ख्म लगे है
शब्दों को
गुज़रती है तो
छिल जाते है
गला भर आता है
लहू से
उगल दूँ ये ज़ख्म
या फिर
सी लूँ इन्हें
उगले से तो
अन्दर
शांति हो जाएगी
पर बहार ज़लज़ला
आ जायेगा
जो सी दिया तो
जानती हूँ
फिर उफन उफन
आएगा
निगल लूँ फिर
बात आबरू सी रहेगी
दफन .....

Saturday, 28 September 2013

तुम
नहीं कह सकते
कि मुझ से प्रेम है
बातों में उलझा
सकते हो बस
प्रेम में तुम क़सीदे
ही पढ़ो
मेरी आँखे
तुम कभी नहीं पढ़
सकते .....

Wednesday, 25 September 2013

कुछ किस्से
आसमा में
तारों के जैसे
झिलमिलाते रहते है
हाँ ...
कभी कभी जो
वक़्त के
बादलों से छिप
जाया करते है
पर याद की आंधी
उन्हें फिर से
रौशन कर देती है
जहाँ ....
ये किस्से
तुम से चाँद जैसे
और मेरे जैसी चाँदनी
की तरह .....
हम दोनों से मिल
जगमगाते रहते है……
नींद के द्वार
पर खड़ी
आँखे आँसू
बहाती है
उन्हे समझ
का आँचल
थमा कर
इंतज़ार का
कुछ और
वक़्त
मांग लेती हूँ…
मैं ….

Friday, 20 September 2013

दफन 
कर दो
की अब 
साँस
लेना भी गुनाह
लगता है
अपने 
ख्वाबो को
रोज़ मरते
नहीं देख
सकती 
मैं .......
कभी वक़्त
मिले तो
मेरे बारे में
भी सोच लेना ....

जो फूल
तुमने कुचल दिए
उनके चाहने वालो के 
बारे में भी सोच लेना

तुमने कितनी 
मजबूरियों की 
दुहायी दी
जीते जी जिसे 
दफना दिया
उस ‘’जान’’ के 
बारे में भी सोच लेना

उस वक़्त को
तुमने दोषी बना दिया 
मेरे तडपते, 
बिलखते गुज़रे
उस हर पल के 
बारे में भी सोच लेना

तुमने सुनाई 
दुनिया दारी 
की दलीले तमाम
कभी मेरी तरफ 
से भी पैरवी कर 
के भी देख लेना

छन से बिखरना 
किसे कहते है
मेरे बिखरे सपनो
के टुकड़ो को 
गिन के भी देख लेना

तुमने की शुरुआत 
और बीच सफ़र 
में लौट लिए
तुम भी कभी 
अपने घर को आग 
लगा के भी देख लेना

मैं परायी लगी 
इसलिय पल में 
बदल गए ?
कभी आईने में 
खुद से ये सवाल 
कर के भी देख लेना.....

Thursday, 19 September 2013

गहरे मन
के अंधेरों से
मैं 
हाथ बढ़ा
कर उजाले को
टटोलने की
कोशिश करती हूँ
पर ज़ख्मो के
रिसाव से 
फिसलन
इतनी है की
मैं वापस
गहरायी में
फिसल जाती हूँ
ना जाने
कितनी बार
शायद
हर बार .....
इस उलझती
ज़िन्दगी की गुम
हुई राहों को
तलाशने के
प्रयत्न में
गहरी आह भर
फिर से उजाले
की तरफ
निगाह कर ....
मैं हाथ बढ़ाती हूँ 
उसे छूने की
कोशिश करती हूँ
कभी तो
उसका कतरा भर
रह जाये मेरी
उंगलियों के
पोरों पर
देख सकू
उसे करीब से
कभी तो शायद
मेरे हाथों में
वो भर जायेगा
आ कर ....
जिससे मन को
भीगो सकूंगी
निराशा की
आँखों को खोल
आशा के सवेरे
से मिला सकूंगी
और यही सोच
उजाले की राह
में मेरे प्रयास
जारी है ......
काश
मैं अपनी
चलती
घुटती
सांसों कि
उलझनों को
शब्द दे
पाती
तो उन्हें
शिकायत
न होती की
मैं
समझती
नहीं
तड़प उनकी ....

Friday, 13 September 2013

'क्षणिका'......

छुप के रोता
पलट के हँसता
समझे न कोई
बहाने गढ़ता
संभाल के मुझ को
गिरता पड़ता
पगला कितना
मेरा मन !!!

''क्षणिका''

जलती नींदे
रोते सपने
रात भर
तपती
राख पर
करवटे बदलती
मैं ......

Thursday, 12 September 2013

''क्षणिका''.....

तुमने
आकार तलाशा
मैंने
विचार तलाशे
साथ
रहते कैसे
विपरीत
रेखाये जो खीची थीं ...

Sunday, 8 September 2013

ये गुलाब की खुशबू मुझे
हमारी पहली मुलाकात
याद दिलाती है...
सारा घर महका था
उस दिन फूलो से
पर तुम जब करीब आये
जैसे गुलाबों की खुशबू लिए
हवायें चलने लगी.....
हर साँस महकने लगी
तुम साथ लाये थे
जैसे फूलों का महकमा
तुम्हारे जाने के बाद भी
ये महकता एहसास
मुझे लुभाता रहा...
वो बीता दिन और गुज़रती रात
मेरी आँखों से नहीं
मेरी सांसो से हो
गुज़र रही थी
जिसमे तुम थे और
तुम्हारा एहसास...
मेरे साथ ...तुम.....

Tuesday, 3 September 2013

कई घन्टो बैठ
ख़ामोशी के दामन में
आसमां को नापते
तारों को आवाज़ दे
हवाओं की नब्ज़ धाम
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

वक़्त को नजरो में उतार
अश्कों से सपने छान
गीले अरमानो को
अपनी तड़प की आहों
से बार बार सुखा
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

पैरों में पड़े जख्म
से गिन गिन काँच हटाते
खून के दागो को
दुपट्टे से छुडाते
बे सर पैर के बहाने बनाते
सर को ज़मीं से बतियाते
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

हर दिन हर पहर
ज़ुबान पर ताले लगाये
निहारते अनजाने साये
सबकी बातों पर
खुद को समझाते
हर आवाज़ पर आँसू
बहाते ......
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने.....