Thursday, 7 June 2012

चलो चले उस रह जिसकी कोई मंजिल न हो .....तुम साथ रहोगे मिलो तलक.....फिर तन्हाई का मंज़र ना हो...
तुम सोचोगे ऐसा भी क्या सफ़र होगा......जिसकी कोई मंजिल ना हो.......मैं बतलाउंगी तुमको.....मोहब्बत ही वो सफ़र है जो हर मोड़ पर जवां होती है.......हर दिन राह तलाशती है......इस सफ़र के साथी बनो तुम मेरे ...... मैं तुम्हे हर राह जवां हो कर खुबसूरत मोड़ दिखलाउंगी...... जिसका कभी कोई आदि - अंत ना हो ...... चलो चले उस रह जिसकी कोई मंजिल न हो .....तुम साथ रहोगे मिलो तलक.....फिर तन्हाई का मंज़र ना हो......

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