Thursday, 15 January 2015

चाहती थी
कुछ यूँ प्रेम करना कि
सदियों तक हमारा प्रेम
लोग याद करें
जैसे ताजमहल...

पर वो
पत्थर था और
है भी ....प्रेम उससे दूर हो गया
अब बचे हैं तो दीवारों पर पड़े
कुछ खुरदुरे नाम और
नाम पर चली कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें

इसलिए
अब तमन्ना है
सादी मोहब्बत की
जिसे लोग दोहराएं
जैसे अमृता-इमरोज़

मुझे
तुम मिले और
देखो मैं अमृता हो गयी
और तुम
तुम तो थे ही इमरोज़
तभी तो मुझे मिले....है न ....

Friday, 2 January 2015

बीती रात
गुज़रे दिनों की कशिश थामें
धडकने शोर करती रहीं,
नब्ज़ थिरकती रहीं और
मैं...तुम्हें
हमेशा की तरह
खामोशियों के खत लिखती रही

पर
इस बार सोचा है
इन खतों को लफ्ज़ न दे कर
बस ख्याल दूंगी....

स्याही
मेरे चुम्बन की
महक मेरे लबों की और
छुअन....मुझ सी ...

चाहती हूँ
तुम वैसे ही मेरे ख़त पढो जैसे
मैं उन्हें सजाऊं ....

ख्याल बुन कर
महक चुन कर...चुम्बन रख...
अहिस्ता से छुना...

देखना....
तुम मेरी मोहब्बत पढ़ लोगे

पढ़ लोगे न....?

Sunday, 28 December 2014

आधी रात जब तुम
इन सर्द रातों में
मेरी गली से गुज़रते हुए
शब्दों की गर्माहट
अपने लबों पर रख
मेरा नाम बुदबुदाते हो
उस वक़्त
मेरे कमरे में ठंडी पड़ी
मेरी ओढ़नी
तुम्हारी
बाहों की तरह
मुझे सुकूं देती है....

तब
मैं थोड़ी और
बेपरवाही से करवट लेती हूँ....

Sunday, 30 November 2014

चलो
भटक जायें कहीं ....और ढूंढे ...
थोडा सुकूं ...अपने कल के लिए ....

चलो
खनखनाती
उम्मीदों के हाथों से
उतार लें अपने
हिस्से की थोड़ी सी खुशियाँ

चलो
चमचमाती जिंदगी
बुलाती हैं हमें बाहें खोले
देखो न .... कितने मजमे लगे है
रोशनियों से सजे .....

चलो
भटकें.....और पा ले
अपनी ज़िन्दगी ....

चलो ...चलें ...

Monday, 24 November 2014

ज़माने के
डर से नहीं.....उसकी नज़र से
बचाने के लिए
मैंने तुम्हे दिल में छुपा रखा है

तुम्हें कहीं जाना न हो
तो यहीं रहो
मुझ में ...

Friday, 31 October 2014

आज
रोक लूँ चाँद को
तुमको आने में शायद देर लगे

कुछ और वक़्त तक ताकूँ उसको
कुछ देर तक बना लूँ तस्वीर तुम्हारी इन तारों को जोड़ कर

सुनती हूँ रोज़ हवाओं के अफ़साने
चांदनी से ....तुम आओ
दोहराने हैं कुछ किससे पुराने ....मुझे भी

कितने धीरे-धीरे
घिसट-घिसट कर पल गुजर रहे हैं
देखो.....छिलते जातें हैं पाँव इनके पर
जिद्द के पक्के ..... मुझे सताना जो है इनको

इतनी ख़ामोशी
से जो ये रात चल रही है ....सवेरा कब होगा...
शायद पता न लगे .....तुम कब आओगे फिर ?

सवेरे तक ये
चाँद नहीं रुकेगा मेरे लिए .....

आ जाओ .....
अब तो तारे भी
पीरों लिए मैंने गिनतियों में .....

आ जाओ न.....