चाहती थी
कुछ यूँ प्रेम करना कि
सदियों तक हमारा प्रेम
लोग याद करें
जैसे ताजमहल...
पर वो
पत्थर था और
है भी ....प्रेम उससे दूर हो गया
अब बचे हैं तो दीवारों पर पड़े
कुछ खुरदुरे नाम और
नाम पर चली कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें
इसलिए
अब तमन्ना है
सादी मोहब्बत की
जिसे लोग दोहराएं
जैसे अमृता-इमरोज़
मुझे
तुम मिले और
देखो मैं अमृता हो गयी
और तुम
तुम तो थे ही इमरोज़
तभी तो मुझे मिले....है न ....
कुछ यूँ प्रेम करना कि
सदियों तक हमारा प्रेम
लोग याद करें
जैसे ताजमहल...
पर वो
पत्थर था और
है भी ....प्रेम उससे दूर हो गया
अब बचे हैं तो दीवारों पर पड़े
कुछ खुरदुरे नाम और
नाम पर चली कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें
इसलिए
अब तमन्ना है
सादी मोहब्बत की
जिसे लोग दोहराएं
जैसे अमृता-इमरोज़
मुझे
तुम मिले और
देखो मैं अमृता हो गयी
और तुम
तुम तो थे ही इमरोज़
तभी तो मुझे मिले....है न ....